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Showing posts with the label मोहब्बत

नशा भर के देख लूँ तुझे।

नशा भर के देख लूँ तुझे शराब समझकर, कोई ग़जल न लिख दूं मैं फ़िर तुझे अल्फ़ाज़ समझकर। इस क़दर जूनून छाया है मुझपर तेरे इश्क़ का, जूगनूयें दिन में उड़ाता हूँ मैं रात समझकर। हर दुआओं में बस एक तुझे ही मांगता हूँ मैं, बड़ी सिद्दत से पढ़ता हूँ तुझे नमाज़ समझकर। लोगों में चर्चें न फैल जाए हमारे, अब तक छुपा रखा है तुझे राज़ समझकर। तू इश्क़ की एक लंबी सी चादर है, आ तुझे ओढ़ लूँ मैं रस्मे-रिवाज़ समझकर। तू भी आजमले की कितनी शिक़ायत है मुझे तुझसे, मैं रूठा हूँ मुझे मना ले नाराज़ समझकर। मोहब्बत इस जहां में कौन मुझसा तुझपर लुटायेगा, बड़े सलीक़े से संभाला है तुझे मौसमे-गुलज़ार समझकर।                                                     - दीपक कुमार

मैं हूँ और बस मेरी तन्हाई है।

मुझे ख़ुद से अब इतनी रुसवाई है, की हर तरफ़ तेरी यादों की परछाईं है, दूर तलक मेरी नजरें तुझे ढूंढ़कर लौट आती है, अब मैं हूँ और बस मेरी तन्हाई है।                                                   -दीपक कुमार

अंदर तक हिला दूंगा मैं।

किसी रोज़ मिलो तो मिलके सारे गिले शिकवे मिटा दूंगा मैं, लगा कर तुझे सीने से अंदर तक हिला दूंगा मैं।                                                      -दीपक कुमार

ये तय हुआ था।। @https://youtu.be/0lymVTMh7Ns

साथ साथ चलना है ये तय हुआ था, इस शहर में रहना भी तय हुआ था। अब जो चले गए हो मुझे बेघर करके, एक घर मे साथ साथ रहना भी तय हुआ था। उम्मीद है तुम अपनी ख़बर देते रहोगे, जुदा होकर भी खत लिखना ये तय हुआ था। मोहब्बत में यादें सिर्फ मेरे हिस्सें ही आयी, जबकि याद तू भी करेगी ये तय हुआ था। सोचा इसबार की तेरी आख़िरी ख़त भी जला दूंगा मैं, मगर खयाल आया कि तुझे आबाद रखना भी तय हुआ था। मेरे ज़ेहन से तू आज भी जाती नही है, भुलाया मैं भी नही जाऊंगा ये तय हुआ था। बिछड़ कर जो मुझसे दूर रहने लगे हो, बगैर मेरे एक पल भी न रह पाओगे ये तय हुआ था।                                                        -दीपक कुमार

वो धीरे से धीरे मेरी ही गली आ रही है।

धीमी धीमी सी तेरी आहटें अब आ रही है, हौले हौले से मेरी धड़कने ये बढ़ा रही है, सुन ऐ नादां दिल तू ठहर जा, एक नशा सो वो हवा में मिला रही है, वो धीरे से धीरे मेरी ही गली आ रही है। जुल्फें उसकी जो खुले तो खुशबुएं बिखरा रही है, लब जो उसके खुल पड़े तो मोतियें बरसा रही है, साजिशें वो इन फिज़ां में करके मुझको बहका रही है, वो धीरे से धीरे मेरी ही गली आ रही है। नज़रें उसकी जो उठे तो इक क़यामत वो ला रही है, उंगलियों से गेसुओं को अपने वो सुलझा रही है, राह भी अब उसकी खातिर पत्तियाँ बिछा रही है, वो धीरे से धीरे मेरी ही गली आ रही है।                                                        -दीपक कुमार

बुझे बुझे से हैं।

बुझे बुझे से हैं ख़्वाब मेरे, तू आके इन्हें ज़रा हवा तो दे, ढह गया है मेरे सपनों का वो मकां, बात इतनी सी है कि इक मुक़म्मल जहां तो दे।                                                        -दीपक कुमार

आहिस्ता आहिस्ता

आहिस्ता आहिस्ता मैं तुझसे जुदा हो रहा हूँ, मुझे न पता है मैं क्या से क्या हो रहा हूँ। खतावार हूँ मैं तेरी वफ़ा का, तेरे ही संसार से मैं अब लापता हो रहा हूँ। ज़िक्र तेरा ही है लबों पे अब भी, यादों की लौ में धुआँ हो रहा हूँ। नमी तेरी आंखों की मैं ढूंढता हूँ, अश्कों की खातिर तेरी मैं हवा हो रहा हूँ। आवाज़ दे कि मुझको बुलाले तू वापस, घड़ी हर घड़ी मैं अब फ़ना हो रहा हूँ।                                                      -दीपक कुमार

जहाँ रोती है मेरी मोहब्बत।

जहाँ रोती है मेरी मोहब्बत, बेवफ़ा वो तेरा ठिकाना है, लिख रहा हूँ अश्कों से जो, ये मेरा फ़साना है।                          जहाँ तूने किये थे मुझसे सौ वादे,                          जानता न था मैं तेरे इरादे,                          मैं तड़प रहा हूँ अब यहां,                          छोड़ के गये हैं तूने वो यादें।                          जाने का तेरा ये अच्छा बड़ा बहाना है,                          लिख रहा हूँ अश्कों से जो,                          ये मेरा फ़साना है। मेरी वफ़ा का तुने क्या सिला दिया, ग़म के दामन से है मुझको मिला दिया, ज़िन्दगी मेरी अब बिखर गई है, अपने हाथों से तूने ज़हर पिला दिया। वफ़ा का दर्द भी बड़ा सुहाना है, लिख रहा हूँ अश्कों से जो, ये मेरा फ़साना है।                                                       -दीपक कुमार                             

अब जो आओगी तो फिर जाना नही।

सुनो, अब जो आओगी तो फ़िर जाना नही, जैसे पहले मेरा दिल दुखाया था फिर दुखाना नही। अभी तो मैं ठीक से संभल भी नही पाया हूँ, पकड़ के हाथ मेरा फिर गिराना नहीं। कम्बख़त तेरी ज़ुल्फ़ें जो मेरी उँगलियों में उलझ जाया करती थी कभी, अब उन्हें फिर से सुलझाना नही। अब जो आओगी तो फिर जाना नही। वक़्त के साथ मेरी तहरीर बदल गयीं, कभी लगाया था जो किसी कोने में अब वो तस्वीर बदल गयी, अब तेरी यादों से परे मुक़म्मल नींद में हूं मैं, अपनी आहट से फिर मुझे जगाना नही। अब ये ऐलान है मेरा की, इश्क़-ए-दरिया में इतना डूबा हूं, की फ़िर से मुझे डुबाना नही। अब जो आओगी तो फिर जाना नही। अब जो आओगी तो फिर जाना नही।

कभी लगे तन्हाई सी.......

कभी ज़िन्दगी सा ना रहा कुछ, कभी लगे तन्हाई सी... मेरे संग संग तू चल रही है, बनके जैसे परछाई सी। कभी लगे तू मुझमें बसी है, कभी लगे इक अंगड़ाई सी, जिस जगह पे मैं अब जाऊँ, तू लगे पूरबाई सी। सोचूं मैं बस अब तुझे ही, है यादों में तू छायी सी, लब पे तुझको ही सजा लूँ, तू लगे इक रुबाई सी। मानता हूँ मैं तुझे बस, हो गयी तू ख़ुदाई सी, पास आके कर दे अब तू, दूर ये तन्हाई सी....। कभी ज़िन्दगी सा ना रहा कुछ, कभी लगे तन्हाई सी... मेरे संग संग तू चल रही है, बनके जैसे परछाई सी।                                     -दीपक कुमार Kabhi zindgi sa na raha kuchh, Kabhi lage tanhai si, Mere sang sang tu chal rahi hai, banke jaise parchhai si. Kabhi lage tu mujhme basi hai, Kabhi lage ek angrai si, Jis jagah pe mai ab jaun, Tu lage purbai si. Kabhi zindgi sa na raha kuchh, Kabhi lage tanhai si. Sochoon mai ab bas tujhe hi, Hai Yaadon me tu hi chhayi si, Lab pe tujhko hi saja loon, Tu lage ek rubai si.. Manta hu mai tujhe bas Ho gayi tu khudai si.. Pas aake kar de ab tu Door ye tan

ऐ दिल तू न जाने।

ऐ दिल तू न जाने क्या मांगता है, था जो तेरा वो अब किसी और का है। परेशां तू क्यूँ इतना हरदम, यादों में उसके जो पल पल रोता है। उसी से शुरू थी वफ़ा की कहानी, अब कैसे कटेगी ये अधूरी ज़िन्दगानी, मोहब्बत में समझा था जिसको ख़ुदा, है साँसों में अब भी उसी की रवानी, वो दिलबर मेरा हो न सका, मैं खोकर भी उसको खो न सका, अब यादों में आंखों से मेरी, दिन रात बहता है पानी। ऐ दिल तू न जाने क्या मांगता है, था जो तेरा वो अब किसी और का है। कैसे मनाऊं मैं ऐ दिल तुझको, चाहत में उसने दगा दी है मुझको, वो सनम जो मेरा सनम न हुआ, उठ रहा हर तरफ यादों का धुआँ, वो इश्क़ था या थी तिज़ारत, झूठी थी यारों हा उसकी मोहब्बत, मुझपे सितम जो उसने किये हैं, इस बात की क्या ख़बर भी है उसको, ऐ दिल तू न जाने क्या मांगता है, था जो तेरा वो अब किसी और का है।                                                                                 -दीपक कुमार

मोहब्बत तो हमें भी था उनसे बेपनाह।

मोहब्बत तो हमें भी था उनसे बेपनाह, मगर कभी जताना न आया। जो पहुँचे उनके पास इश्क़ का फ़रमान लेकर, तो उन्हें निभाना न आया। ये सच है के हम भी नासमझ थे, और नादां वो भी थी, जो गिरे इश्क़ में ठोकरें खाकर हम, तो उन्हें संभालना भी न आया। मुझे यक़ीन था के तूफ़ां में, वो कस्ती का साथ नही छोड़ेंगे, ज़िक्र साहिल का वो क्या करेंगी दोस्तों, जिनका खुद अब तक किनारा न आया। न जाने उन्हें किस जीत की आस थी, दर्द से जीतें हैं हमने कई महफिलें, उम्र भर भटकते रहे मगर, खुशियों का कोई ठिकाना न आया।                                              -दीपक कुमार

मोहब्बत के सवाल कुछ ऐसे थे।

मोहब्बत के सारे सवाल कुछ ऐसे थे, मेरे जज़्बातों के हाल कुछ ऐसे थे।                    अभी सफ़र शुरू किया था मोहब्बत का,                    पर मन के ख़्याल कुछ ऐसे थे। जब सावन की पहली बून्द गिरी तन पे, वह अल्हड़ सोलहवी साल कुछ ऐसे थे।                   सब हंसते रहे मेरी दीवानगी पर ऐ दोस्त,      मेरी ज़िंदगी में वक़्त के बदलते माहौल कुछ ऐसे थे।                                                    - दीपक कुमार                   

मोहब्बत के सवाल कुछ ऐसे थे।

मोहब्बत के सारे सवाल कुछ ऐसे थे, मेरे जज़्बातों के हाल कुछ ऐसे थे।                    अभी सफ़र शुरू किया था मोहब्बत का,                    पर मन के ख़्याल कुछ ऐसे थे। जब सावन की पहली बून्द गिरी तन पे, वह अल्हड़ सोलहवी साल कुछ ऐसे थे।                   सब हंसते रहे मेरी दीवानगी पर ऐ दोस्त,      मेरी ज़िंदगी में वक़्त के बदलते माहौल कुछ ऐसे थे।                                                    - दीपक कुमार                   

मैं लुटा प्यार में

मैं लुटा प्यार में मेरा फ़साना लूट गया, वफ़ा के समंदर का वो खज़ाना लूट गया।                    आज भी याद है मुझे वो शाम,                   जिस शाम को मेरा दिल दिवाना लूट गया। क्या थी ख़ूबसूरत वो चांदनी रात, जिस रात को मेरा ठिकाना लूट गया।                   वो इंतज़ार की घड़ियां वो ऐतबार के पल,                   जिस पल को मेरा गाना लूट गया। सीखें थे हमने जिनसे इक़रार भला, उस इक़रार का तराना लूट गया।                  क्या नाम दूँ मै उनका ऐ रहगुज़र,                  जिनके खता पर मेरा आशियाना लूट गया।                                                                                       - दीपक कुमार                    

तु मय बरसाती है।

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मदिरा सी मधुता तब ये छलकाती है नैन तेरे जब गोरी काज़ल से लिपट जाती है, मन पापी मचल उठता है पीने को, जब आंखों से तू मय बरसाती है।                  मै पुलकित हो उठता हूं तुझे पाकर,                  तू आई हो जैसे ग़ुलाब जल में नहाकर,                  हर सुबह मुझसे तेरा गुणगान करती हैं                  कलियाँ भी झुक के तेरा सम्मान करती हैं,                  अब तक तो थी सड़कें वीरान सी                  पर वो भी अब तेरा बयां करती है, तब इस मृदुल अदा पे तेरी सुबह भी इतरा जाती है, जब आँखों से तू मय बरसाती हैं।                             सहेलियों के संग जब तू कुछ बातें करती है    जब छुप-छुप के तेरी नज़रें मुझसे मुलाक़ातें करती हैं,                जब रीति-रस्म सब पुराने से लगतें हैं                जब सारी रैना आहें भरती हैं,                जब गीत मेरे होंठों पर आ जाते हैं                जब सर्द शबनम धूप में पिघल जाते हैं, तब मन मंदिर में तू दस्तक़ दे जाती है, जब आंखों से तू मय बरसाती हैं।                दिन ढ़लता है और जब शाम आती है                न जाने क्यूँ एक बेचैनी सी छा जा

कर दे किसी को मेरे हिस्से में

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बदल दे रुख मेरी तक़दीर का, कर दे किसी को मेरे हिस्से में, बहुत सुनता आया हूँ मैं, मोहब्बत को अबतक किस्से में।                      ज़माने में कोई तो होगा,                      जो सिर्फ मेरा होगा,                      जिसके लब पे इस क़दर सँवर जाऊ मैं,                      के हर शाम के बाद वो मेरा सवेरा होगा। अगर ये मुमकिन नहीं, तो मेरी गुज़ारिश हैं, कर दे शामिल मुझें भी, बदनसीबो के किस्से मे।                         बदल दे रुख मेरी तक़दीर का,                         कर दे किसी को मेरे हिस्से में।                                                       - दीपक कुमार                                                        

पिया बेदर्दी।

पिया तु बड़ा बेदर्दी पिया तु बड़ा बेदर्दी कस्में सारी तोड़ गया तु जग में तन्हा छोड़ गया तु यादों का अब तूफ़ां घिरा है हाय निर्मोही ये क्या कर दी। पिया तु बड़ा बेदर्दी।                                      तेरे लिए अब मेरे सजना                        सारी उमर मुझे हैं आहें भरना                        नाम तेरा मै लिख लिख रोऊँ                        तेरे बिना मुझे अब नही रहना                        बैरी क़िस्मत ये क्या कर दी।                        पिया तु बड़ा बेदर्दी। लाख़ ज़माना मुझको सताये पर दिल से तेरी याद न जाये आँसू मेरे बह जाने दे ऐ सजना कुछ कर जाने दे जीवन में कैसी ज़हर है भर दी। पिया तु बड़ा बेदर्दी। पिया तु बड़ा बेदर्दी।                                 - दीपक कुमार

दे के पल भर का साथ

दे के पल भर का साथ अब दूर जा रहे हो, ऐसे हालात में जो तुम रुला रहे हो। कुछ लमहा हम है साथ में बिताएं, कुछ बातों को है हँसी-मज़ाक़ में उड़ाये, कुछ सीख जो तुमने दी है, और कुछ वादे जो तुमने हैं निभाये, भावनाओं की एक लहर उठा रहे हो, ऐसे सफ़र में जो तुम जा रहे हो।                 बरसों का हमारा साथ रहा है,                 कभी ख़ुशी तो कभी ग़म का बरसात रहा है,                 तुमने बांटे है जो कुछ पल,                 उस पल का ये सौगात रहा है,                 यादों का एक बाँध बना रहे हो,                 जो तुम यूँ दूर जा रहे हो। ये दुआं है हमारी की, हर तऱफ कामयाबी का मंजर हो, आप तमन्ना करो तालाब की, और वहाँ समंदर हो, खुदा करे हर वो ख़्वाब मुक़्क़मल हो, जिसे पाने की हसरत आपके अंदर हो, क्या खूब साथ निभा रहे हो, जो तुम यूँ दूर जा रहे हो।                                                                                

सितमगर ज़माने ने

सितमगर ज़माने ने सताया न होता, मुझको तेरी याद आया न होता।                                मै तो तन्हा था कब से,                                तेरी यादों ने रुलाया न होता। न लिखता मैं ग़ज़ल साकी, गर तुने उल्फत जताया न होता।                                गिर जाते अश्क़ आंखों से मेरे,                                जो खुद को संभाला न होता। न जीता ग़म के अँधेरे में, तुने पलकों से मुझे गिराया न होता।