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वो बचपन की चाहत भुलाऊँ मैं कैसे।

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बनाया है जो घर यादों का उसे मिटाऊँ मैं कैसे, वो बचपन की चाहत भुलाऊँ मैं कैसे। आसान इतना नही जितना मै सोचता हूँ, अपनी यादों से उसे मिटाऊँ मैं कैसे। सावन बीत रहा है मगर प्यास गयी नही, दो घूँट में सीने की प्यास बुझाऊँ मै कैसे। वो जो मेरी आवाज़ पर दौड़ा चला आता था, इतनी दूर चला गया है,उसे बुलाऊँ मै कैसे। समय की धारा ने सबकुछ बहा दिया है, जो बच गया है उसे सजाऊँ मै कैसे। उस की चाहत में मैंने कुछ न छिपाया, और कुछ भी कहना है मगर उसे बताऊ मै कैसे। वो वक़्त और था जब हम स्कूल की खिड़की से उनकी राह देखते थे, वो गुजरा हुआ कल आज वापस लाऊँ मै कैसे। उनकी ख़ातिर दुश्मनी हो गयी ज़माने से, अब दोस्ती का हाथ भला बढाऊँ मै कैसे। मौसम बदल गया प्रीत का, ज़िंदगी वीरान हो गयी, होंठों पे अब वो प्यार के गीत लाऊँ मै कैसे। सड़क आज भी वही जाती है उनके घर तक, पर अब उस राह पे जाऊँ मै कैसे। मेरी कहानी में ज़िक्र सिर्फ़ उनका ही हैं, ये हाले दिल किसी को सुनाऊँ मै कैसे। वो जो अब पड़ाया है कभी मेरा था, फिर से उसे अपना बनाऊँ मै कैसे। अतीत मेरा भी किसी राँझे से कम नही है, ये अपनी हीर को बताऊँ मै कैसे।