कृष्ण - कमल सा मै तुझको तब पाता हूँ
विकट उलझनो से उलझा जब मै बस मे आता हूँ कृष्ण - कमल सा मै तुझको तब पाता हूँ, तु भावनाओ की एक सागर सी लगती है और मन जल - तरंग सा पाता हूँ। यूँ तो उस बस मे भीड बहुत होती है, कभी क्रन्द्न से स्वर होते है और कभी खामोशी होती है, कभी तेज़ हवाये गालो को छू जाती है और कभी किलकारियाँ तेरी मन को बहलाती है, कभी सबकुछ एकदम से थम जाता है और कभी वक़्त दरिया का पानी लगता है, इस क्रम मे भी ये महसूस होता है के जैसे एक तू होती है और एक मै होता हूँ। रोज – रोज ये सिलसिला चलता है तू सामने होती है और ये आलम होता है, तुझसे बाते करने को हर बहाने ढूँढता हूँ कभी आगे देखता हूँ तो कभी पीछे मुडता हूँ, कभी नज़र खिड्कियोँ से बाहर चली जाती है और कभी अचानक से तुझपे पड जाती है,