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नशा भर के देख लूँ तुझे।

नशा भर के देख लूँ तुझे शराब समझकर, कोई ग़जल न लिख दूं मैं फ़िर तुझे अल्फ़ाज़ समझकर। इस क़दर जूनून छाया है मुझपर तेरे इश्क़ का, जूगनूयें दिन में उड़ाता हूँ मैं रात समझकर। हर दुआओं में बस एक तुझे ही मांगता हूँ मैं, बड़ी सिद्दत से पढ़ता हूँ तुझे नमाज़ समझकर। लोगों में चर्चें न फैल जाए हमारे, अब तक छुपा रखा है तुझे राज़ समझकर। तू इश्क़ की एक लंबी सी चादर है, आ तुझे ओढ़ लूँ मैं रस्मे-रिवाज़ समझकर। तू भी आजमले की कितनी शिक़ायत है मुझे तुझसे, मैं रूठा हूँ मुझे मना ले नाराज़ समझकर। मोहब्बत इस जहां में कौन मुझसा तुझपर लुटायेगा, बड़े सलीक़े से संभाला है तुझे मौसमे-गुलज़ार समझकर।                                                     - दीपक कुमार

आहिस्ता आहिस्ता

आहिस्ता आहिस्ता मैं तुझसे जुदा हो रहा हूँ, मुझे न पता है मैं क्या से क्या हो रहा हूँ। खतावार हूँ मैं तेरी वफ़ा का, तेरे ही संसार से मैं अब लापता हो रहा हूँ। ज़िक्र तेरा ही है लबों पे अब भी, यादों की लौ में धुआँ हो रहा हूँ। नमी तेरी आंखों की मैं ढूंढता हूँ, अश्कों की खातिर तेरी मैं हवा हो रहा हूँ। आवाज़ दे कि मुझको बुलाले तू वापस, घड़ी हर घड़ी मैं अब फ़ना हो रहा हूँ।                                                      -दीपक कुमार

हर लम्हा हर बातें तेरी मुझको

हर लम्हा हर बातें तेरी मुझको सताती है, दिन बीते या ना बीते पर रातें मुझको जगाती है। तेरा मिलके वो बिछड़ना मेरी पलकों पे छा जाती है, तुझे भूलूँ तो भी कैसे मेरी सांसे थम सी जाती है। अब राहें मुश्किल हैं जो संग तेरे आसान काट जाती थी, तुझे मिलके हर घड़ियां जैसे सदियों में बदल जाती थी। ये सावन क्या बरसेगा मेरी अखियां ही बरस जाती है, तुझे ढूँढू बूंदों में न जाने कहाँ तू छुप जाती है, मेरा सबकुछ तो तू था मेरी जान निकलती जाती है। हर लम्हा हर बातें तेरी मुझको सताती है, दिन बीते या ना बीते पर रातें मुझको जगाती है।                                                    -दीपक कुमार

दोस्त तुझे याद तो है ना।

घर से स्कूल तक पैदल जाना, और अतरंगी बातों पे खिलखिलाना, दोस्त तुझे याद तो है ना। वो बचपन का हसीन फ़साना, दोस्त तुझे याद तो है ना। जब क़दम हमारे स्कूल की सीढ़ियों पे पड़ते थे, नैन उस लडक़ी से जा मिलते थे, हरे रंग की फ्रॉक में उसका आना, दोस्त तुझे याद तो है ना। जब सन्नाटा हर तरफ हो जाता था, जब हर कोई किताबों की गहराई में खो जाता था, तब तेरा चुपके से मेरे कानों में फुसफुसाना, दोस्त तुझे याद तो है ना। चुप चुप के जब कहानियां पढ़ते थे, एक दूसरे की ख़ातिर जब औरों से लड़ते थे, वो शोरगुल भी तो प्यारा लगता था, सच कहूं तो सबकुछ हमारा लगता था, वो बालों में नारियल तेल लगा के आना, दोस्त तुझे याद तो है ना। वो बचपन का हसीन फ़साना दोस्त तुझे याद तो है ना।                                               - दीपक कुमार

कभी लगे तन्हाई सी.......

कभी ज़िन्दगी सा ना रहा कुछ, कभी लगे तन्हाई सी... मेरे संग संग तू चल रही है, बनके जैसे परछाई सी। कभी लगे तू मुझमें बसी है, कभी लगे इक अंगड़ाई सी, जिस जगह पे मैं अब जाऊँ, तू लगे पूरबाई सी। सोचूं मैं बस अब तुझे ही, है यादों में तू छायी सी, लब पे तुझको ही सजा लूँ, तू लगे इक रुबाई सी। मानता हूँ मैं तुझे बस, हो गयी तू ख़ुदाई सी, पास आके कर दे अब तू, दूर ये तन्हाई सी....। कभी ज़िन्दगी सा ना रहा कुछ, कभी लगे तन्हाई सी... मेरे संग संग तू चल रही है, बनके जैसे परछाई सी।                                     -दीपक कुमार Kabhi zindgi sa na raha kuchh, Kabhi lage tanhai si, Mere sang sang tu chal rahi hai, banke jaise parchhai si. Kabhi lage tu mujhme basi hai, Kabhi lage ek angrai si, Jis jagah pe mai ab jaun, Tu lage purbai si. Kabhi zindgi sa na raha kuchh, Kabhi lage tanhai si. Sochoon mai ab bas tujhe hi, Hai Yaadon me tu hi chhayi si, Lab pe tujhko hi saja loon, Tu lage ek rubai si.. Manta hu mai tujhe bas Ho gayi tu khudai si.. Pas aake kar de ab tu Door ye tan

ओ बेबी तेरी पतली कमर।

ओ बेबी तेरी पतली कमर सताये मुझे शाम सहर, ओ बेबी तेरी पतली कमर। चोरी-चोरी चुपके से देखा करता हूँ, रात दिन तेरे लिए आहें भरता हूँ, माना तेरे आशिक़ हैं कई सारे लड़के, पर सच्चा वाला प्यार बस मैं ही करता हूँ। सुबह करूँ, शाम करूँ तेरी बातें मैं सबसे खुलेआम करूँ, सेटिंग मैंने सारी कर ली है, इश्क़ में तुझे थोड़ा बदनाम करूँ। क्या करूँ कुछ नही आता है नज़र, ओ बेबी तेरी पतली कमर।                  सोच लिया मैंने अब कहीं न जाना है,                  वीकेंड में प्लान तेरे संग बनाना हैं।                  KFC या Mac D, पर ये सब तो पुराना है,                  चल कहीं चलते हैं रात ये सुहाना है।                  पर बाद में न कहना के,                  बेबी जल्दी घर जाना हैं।                 कैसे-कैसे बतलाऊँ मेरे क्या-क्या अरमान हैं,                 तू ही मेरा दिल ,की तू ही मेरी जान हैं।                 रोक न मुझे तू टोक न मुझे,                 दिल मेरा हुआ आज बेईमान है।                 डर लगता है कहीं ये,हसीं रात न जा गुज़र,                 ओ बेबी तेरी पतली कमर।                 सताये मुझे

दिल मेरा तोड़ा तुने

दिल मेरा तोड़ा तुने मेरा ही कुसूर था, इश्क़ में तेरे मैं बड़ा मजबूर था।                         रीजन क्या था पहले ये सोच लूं                        आंटी जी को फ़ोन करके मैं पूछ लूं,                        बेटी ने आपकी दिल मेरा दुखाया है           ब्रेकअप के बाद उसका एक फ़ोन नही आया है। Fb पे मैसेज मैं उसे करता हूँ WhatsAap पे status भी मैं change करता हूँ, इससे पहले कभी जो लिखा नही Breakup वाला song मैं अब लिखता हूँ।                              जा तू जा अब कोई ग़म नही है                              बाजू वाली भी तुझसे कम नही है,                              गर्लफ्रैंड मैं अब उसको बनाऊंगा                      गोवा वाली ट्रिप पे मैं उसे लेके जाऊंगा। अच्छा हुआ तू खुद ही मुकर गईं रात वाली हैंगओवर मेरी उतर गई, Life में अब सबकुछ साफ-साफ है सुन ऐ ज़ालिम मैने किया तुझे माफ़ है।                                                                                                               - दीपक

मैं लुटा प्यार में

मैं लुटा प्यार में मेरा फ़साना लूट गया, वफ़ा के समंदर का वो खज़ाना लूट गया।                    आज भी याद है मुझे वो शाम,                   जिस शाम को मेरा दिल दिवाना लूट गया। क्या थी ख़ूबसूरत वो चांदनी रात, जिस रात को मेरा ठिकाना लूट गया।                   वो इंतज़ार की घड़ियां वो ऐतबार के पल,                   जिस पल को मेरा गाना लूट गया। सीखें थे हमने जिनसे इक़रार भला, उस इक़रार का तराना लूट गया।                  क्या नाम दूँ मै उनका ऐ रहगुज़र,                  जिनके खता पर मेरा आशियाना लूट गया।                                                                                       - दीपक कुमार                    

वो कहती रही।

वो कहती रही मै सुनता रहा, ख़्वाब उसके ही अक्सर मै बुनता रहा, एहसास तब हुआ जुदाई का, उसके जाने के बाद , जब मैं उसे ढूँढता रहा। बड़ी अजीब सी हो गई है ज़िन्दगी, अब बस यादों का किनारा है, हवाओं का ज़ोर भी नही था, और मैं सुलगता रहा।                             मन की टहनियों से,                             अब वो प्यार टपकता है,                             फिर से उसकी लाली पे,                             गिरने को ये बूंदे तरसता है।                                                        ना समझ था मैं,                             जो न उसे समझ पाया,                             कुछ मीठी बातें हैं उसकी,                             और कुछ हल्का सा साया।                                 जो हर पल चुभती है मुझको,                             आ फिर से अब रोक लूँ तुझको,                       वो खुद में सारा संसार बसाए बैठी है,                      जीवन को जैसे अमृतधार बनाये बैठी है,                               एक ही गति से वो चलती रही,                      और मैं हर कदम पे फिसलता रह

वो बचपन की चाहत भुलाऊँ मैं कैसे।

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बनाया है जो घर यादों का उसे मिटाऊँ मैं कैसे, वो बचपन की चाहत भुलाऊँ मैं कैसे। आसान इतना नही जितना मै सोचता हूँ, अपनी यादों से उसे मिटाऊँ मैं कैसे। सावन बीत रहा है मगर प्यास गयी नही, दो घूँट में सीने की प्यास बुझाऊँ मै कैसे। वो जो मेरी आवाज़ पर दौड़ा चला आता था, इतनी दूर चला गया है,उसे बुलाऊँ मै कैसे। समय की धारा ने सबकुछ बहा दिया है, जो बच गया है उसे सजाऊँ मै कैसे। उस की चाहत में मैंने कुछ न छिपाया, और कुछ भी कहना है मगर उसे बताऊ मै कैसे। वो वक़्त और था जब हम स्कूल की खिड़की से उनकी राह देखते थे, वो गुजरा हुआ कल आज वापस लाऊँ मै कैसे। उनकी ख़ातिर दुश्मनी हो गयी ज़माने से, अब दोस्ती का हाथ भला बढाऊँ मै कैसे। मौसम बदल गया प्रीत का, ज़िंदगी वीरान हो गयी, होंठों पे अब वो प्यार के गीत लाऊँ मै कैसे। सड़क आज भी वही जाती है उनके घर तक, पर अब उस राह पे जाऊँ मै कैसे। मेरी कहानी में ज़िक्र सिर्फ़ उनका ही हैं, ये हाले दिल किसी को सुनाऊँ मै कैसे। वो जो अब पड़ाया है कभी मेरा था, फिर से उसे अपना बनाऊँ मै कैसे। अतीत मेरा भी किसी राँझे से कम नही है, ये अपनी हीर को बताऊँ मै कैसे।          

तु मय बरसाती है।

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मदिरा सी मधुता तब ये छलकाती है नैन तेरे जब गोरी काज़ल से लिपट जाती है, मन पापी मचल उठता है पीने को, जब आंखों से तू मय बरसाती है।                  मै पुलकित हो उठता हूं तुझे पाकर,                  तू आई हो जैसे ग़ुलाब जल में नहाकर,                  हर सुबह मुझसे तेरा गुणगान करती हैं                  कलियाँ भी झुक के तेरा सम्मान करती हैं,                  अब तक तो थी सड़कें वीरान सी                  पर वो भी अब तेरा बयां करती है, तब इस मृदुल अदा पे तेरी सुबह भी इतरा जाती है, जब आँखों से तू मय बरसाती हैं।                             सहेलियों के संग जब तू कुछ बातें करती है    जब छुप-छुप के तेरी नज़रें मुझसे मुलाक़ातें करती हैं,                जब रीति-रस्म सब पुराने से लगतें हैं                जब सारी रैना आहें भरती हैं,                जब गीत मेरे होंठों पर आ जाते हैं                जब सर्द शबनम धूप में पिघल जाते हैं, तब मन मंदिर में तू दस्तक़ दे जाती है, जब आंखों से तू मय बरसाती हैं।                दिन ढ़लता है और जब शाम आती है                न जाने क्यूँ एक बेचैनी सी छा जा

कर दे किसी को मेरे हिस्से में

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बदल दे रुख मेरी तक़दीर का, कर दे किसी को मेरे हिस्से में, बहुत सुनता आया हूँ मैं, मोहब्बत को अबतक किस्से में।                      ज़माने में कोई तो होगा,                      जो सिर्फ मेरा होगा,                      जिसके लब पे इस क़दर सँवर जाऊ मैं,                      के हर शाम के बाद वो मेरा सवेरा होगा। अगर ये मुमकिन नहीं, तो मेरी गुज़ारिश हैं, कर दे शामिल मुझें भी, बदनसीबो के किस्से मे।                         बदल दे रुख मेरी तक़दीर का,                         कर दे किसी को मेरे हिस्से में।                                                       - दीपक कुमार                                                        

क्या मैंने जीवन में है पाया।

समझ समझ के समझ न पाया, क्या मैंने जीवन मे है पाया। तन शीतल है, मन शीतल है, पर जलती है हर क्षण काया।                          जलती है जैसे हर क्षण काया। अरमानों का ज़ोर बहुत है, और ये मन विभोर बहुत है, हर पल मैंने जीत के हारा, ये क़िस्मत की कैसी है माया।                          जलती है जैसे हर क्षण काया। बरसों से तो हम है प्यासे, जाने किसको है हम तरासे, अपने अतीत को कैसे मैं भूलूँ, ये मुश्क़िल है फिर से आया ।                          जलती है जैसे हर क्षण काया। राह कठिन है साँस न ठहरा, हाय,जीवन का ज़ख़्म है गहरा, हँसती है दर्पण अब मुझपे, कौन है अब है किसकी साया।                          जलती है जैसे हर क्षण काया। सपनों के कोई मोल न जाने, तन्हाई के बोल न जाने, दूर कही हैं हमसे क्यूँ वो, लब पे जिनका नाम है आया।                          जलती है जैसे हर क्षण काया।                                                                                                   - दीपक कुमार

बस हमारा था

तन्हाई का एक तू ही सहारा था, इक तेरा प्यार था जो बस हमारा था, थी जिसकी मुझे तलाश तेज़ तूफां में तू वो किनारा था। इक तेरा प्यार था जो बस हमारा था।                                                 - दीपक कुमार

पिया बेदर्दी।

पिया तु बड़ा बेदर्दी पिया तु बड़ा बेदर्दी कस्में सारी तोड़ गया तु जग में तन्हा छोड़ गया तु यादों का अब तूफ़ां घिरा है हाय निर्मोही ये क्या कर दी। पिया तु बड़ा बेदर्दी।                                      तेरे लिए अब मेरे सजना                        सारी उमर मुझे हैं आहें भरना                        नाम तेरा मै लिख लिख रोऊँ                        तेरे बिना मुझे अब नही रहना                        बैरी क़िस्मत ये क्या कर दी।                        पिया तु बड़ा बेदर्दी। लाख़ ज़माना मुझको सताये पर दिल से तेरी याद न जाये आँसू मेरे बह जाने दे ऐ सजना कुछ कर जाने दे जीवन में कैसी ज़हर है भर दी। पिया तु बड़ा बेदर्दी। पिया तु बड़ा बेदर्दी।                                 - दीपक कुमार

क्या मैंने जीवन में है पाया।

समझ समझ के समझ न पाया, क्या मैंने जीवन मे है पाया। तन शीतल है, मन शीतल है, पर जलती है हर क्षण काया।                          जलती है जैसे हर क्षण काया। अरमानों का ज़ोर बहुत है, और ये मन विभोर बहुत है, हर पल मैंने जीत के हारा, ये क़िस्मत की कैसी है माया।                          जलती है जैसे हर क्षण काया। बरसों से तो हम है प्यासे, जाने किसको है हम तरासे, अपने अतीत को कैसे मैं भूलूँ, ये मुश्क़िल है फिर से आया ।                          जलती है जैसे हर क्षण काया। राह कठिन है साँस न ठहरा, हाय,जीवन का ज़ख़्म है गहरा, हँसती है दर्पण अब मुझपे, कौन है अब है किसकी साया।                          जलती है जैसे हर क्षण काया। सपनों के कोई मोल न जाने, तन्हाई के बोल न जाने, दूर कही हैं हमसे क्यूँ वो, लब पे जिनका नाम है आया।                          जलती है जैसे हर क्षण काया।                                                                                                   - दीपक कुमार

मेरा जो भी तजुर्बा है

मेरा जो भी तजुर्बा है ऐ ज़िंदगी, मै तुझे बतला जाऊँगा। चाहे जितना करना पड़े संघर्ष, मै कर जाऊँगा। उम्म्मीद क्या होती है ज़माने में ये हमसे बेहतर कोई नहीं जानता, कभी आ मेरी चौखट पे, ये विषय भी तुझे सिखला जाऊँगा। मेरा जो भी तजुर्बा है ऐ ज़िन्दगी, मैं तुझे बतला जाऊँगा। रंग बदल के तु मेरा इम्तिहां ना ले जीतूंगा मै ही अब हार का नाम ना ले, सितम का ज़ादू तेरा औरों पे चल जायेगा उठूँगा हर हाल में अब गिरने का नाम ना ले। प्यास मेरी थोड़े की नही है जो मिट जाये, ज़रूरत आने पर ये आसमां भी पी जाऊँगा। मेरा जो भी तजुर्बा है ऐ ज़िन्दगी, मैं तुझे बतला जाऊँगा।                                                   - दीपक कुमार

दे के पल भर का साथ

दे के पल भर का साथ अब दूर जा रहे हो, ऐसे हालात में जो तुम रुला रहे हो। कुछ लमहा हम है साथ में बिताएं, कुछ बातों को है हँसी-मज़ाक़ में उड़ाये, कुछ सीख जो तुमने दी है, और कुछ वादे जो तुमने हैं निभाये, भावनाओं की एक लहर उठा रहे हो, ऐसे सफ़र में जो तुम जा रहे हो।                 बरसों का हमारा साथ रहा है,                 कभी ख़ुशी तो कभी ग़म का बरसात रहा है,                 तुमने बांटे है जो कुछ पल,                 उस पल का ये सौगात रहा है,                 यादों का एक बाँध बना रहे हो,                 जो तुम यूँ दूर जा रहे हो। ये दुआं है हमारी की, हर तऱफ कामयाबी का मंजर हो, आप तमन्ना करो तालाब की, और वहाँ समंदर हो, खुदा करे हर वो ख़्वाब मुक़्क़मल हो, जिसे पाने की हसरत आपके अंदर हो, क्या खूब साथ निभा रहे हो, जो तुम यूँ दूर जा रहे हो।                                                                                

सितमगर ज़माने ने

सितमगर ज़माने ने सताया न होता, मुझको तेरी याद आया न होता।                                मै तो तन्हा था कब से,                                तेरी यादों ने रुलाया न होता। न लिखता मैं ग़ज़ल साकी, गर तुने उल्फत जताया न होता।                                गिर जाते अश्क़ आंखों से मेरे,                                जो खुद को संभाला न होता। न जीता ग़म के अँधेरे में, तुने पलकों से मुझे गिराया न होता।

दिल अक्सर तुझसे मिलने को रोता है।

न जाने क्यों ये बार बार होता है, दिल अक्सर तुझसे मिलने को रोता है, जब तु नज़रों से ओझल हो जाती हैं, तब ये चुपके से आहें भरता हैं।                                   जुदाई तुझसे एक पल की भी ना सही जाती है,             अक्सर तन्हाई में तेरी याद बहुत आती है,             मन बावरा बेचैन हो उठता है,             जब तुझसे बात न हो पाती है।        फिर एहसासों के समंदर में एक लहर सा उठता है,        दिल अक्सर तुझसे मिलने को रोता है। जनता हूँ मैं तेरे काबिल नही, जो चीज़ चाहा वो हासिल नही, मोहब्बत में तेरे सबकुछ भुला दिया हूँ, तेरे सिवा अब कोई मेरा मंज़िल नही। मन अंदर ही अंदर एक हुंकार भरता है                             दिल अक्सर तुझसे मिलने को रोता है।