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Showing posts from 2018

रंगहीन सा वो इश्क़ मेरा

रंगहीन सा वो इश्क़ मेरा, जिसे रंगना बड़ा ही मुश्किल है, कहा जाऊं तू ही बता,हर तरफ तो तेरी महफ़िल है, एक तेरी आरज़ू में मर जाऊं तो शायद ये कम होगा, तेरे इंतज़ार में खड़ा आज भी तेरा बिस्मिल है।                                                       - दीपक कुमार

इश्क़ की स्याही।

इश्क़ की स्याही अब फीकी पड़ने लगी, उनसे दूरियाँ भी इस क़दर बढ़ने लगी, ताउम्र जिसे आँखों मे भरता रहा मैं, बनके सावन अब वो बरसने लगी।                                                  - दीपक कुमार

मेरा अफ़साना कहती है

आब-ए-चश्म मेरा अफ़साना कहती है, पत्थर मार के ये दुनिया मुझको दीवाना कहती है।                                            -दीपक कुमार

जहाँ रोती है मेरी मोहब्बत।

जहाँ रोती है मेरी मोहब्बत, बेवफ़ा वो तेरा ठिकाना है, लिख रहा हूँ अश्कों से जो, ये मेरा फ़साना है।                          जहाँ तूने किये थे मुझसे सौ वादे,                          जानता न था मैं तेरे इरादे,                          मैं तड़प रहा हूँ अब यहां,                          छोड़ के गये हैं तूने वो यादें।                          जाने का तेरा ये अच्छा बड़ा बहाना है,                          लिख रहा हूँ अश्कों से जो,                          ये मेरा फ़साना है। मेरी वफ़ा का तुने क्या सिला दिया, ग़म के दामन से है मुझको मिला दिया, ज़िन्दगी मेरी अब बिखर गई है, अपने हाथों से तूने ज़हर पिला दिया। वफ़ा का दर्द भी बड़ा सुहाना है, लिख रहा हूँ अश्कों से जो, ये मेरा फ़साना है।                                                       -दीपक कुमार                             

अब जो आओगी तो फिर जाना नही।

सुनो, अब जो आओगी तो फ़िर जाना नही, जैसे पहले मेरा दिल दुखाया था फिर दुखाना नही। अभी तो मैं ठीक से संभल भी नही पाया हूँ, पकड़ के हाथ मेरा फिर गिराना नहीं। कम्बख़त तेरी ज़ुल्फ़ें जो मेरी उँगलियों में उलझ जाया करती थी कभी, अब उन्हें फिर से सुलझाना नही। अब जो आओगी तो फिर जाना नही। वक़्त के साथ मेरी तहरीर बदल गयीं, कभी लगाया था जो किसी कोने में अब वो तस्वीर बदल गयी, अब तेरी यादों से परे मुक़म्मल नींद में हूं मैं, अपनी आहट से फिर मुझे जगाना नही। अब ये ऐलान है मेरा की, इश्क़-ए-दरिया में इतना डूबा हूं, की फ़िर से मुझे डुबाना नही। अब जो आओगी तो फिर जाना नही। अब जो आओगी तो फिर जाना नही।

यादों के कम्बल में

यादों के कम्बल में हैं उन्हें सीने से लगाये बैठे हैं, कुछ दर्द है जो आज भी हम छुपाये बैठे हैं, उस रात से इस रात तक बस इतना ही फासला है, कभी वो हमारे पास थी और आज, उनकी बातों को लब पे सजाये बैठे हैं।                                                 - दीपक कुमार

दोस्त तुझे याद तो है ना।

घर से स्कूल तक पैदल जाना, और अतरंगी बातों पे खिलखिलाना, दोस्त तुझे याद तो है ना। वो बचपन का हसीन फ़साना, दोस्त तुझे याद तो है ना। जब क़दम हमारे स्कूल की सीढ़ियों पे पड़ते थे, नैन उस लडक़ी से जा मिलते थे, हरे रंग की फ्रॉक में उसका आना, दोस्त तुझे याद तो है ना। जब सन्नाटा हर तरफ हो जाता था, जब हर कोई किताबों की गहराई में खो जाता था, तब तेरा चुपके से मेरे कानों में फुसफुसाना, दोस्त तुझे याद तो है ना। चुप चुप के जब कहानियां पढ़ते थे, एक दूसरे की ख़ातिर जब औरों से लड़ते थे, वो शोरगुल भी तो प्यारा लगता था, सच कहूं तो सबकुछ हमारा लगता था, वो बालों में नारियल तेल लगा के आना, दोस्त तुझे याद तो है ना। वो बचपन का हसीन फ़साना दोस्त तुझे याद तो है ना।                                               - दीपक कुमार

मंज़िले तुमने तय की

मंज़िले तुमने तय की, मग़र रास्ते सारे अंजान थे, कुछ सिमटी हुई यादें ही, तुम्हारे पहचान थे। पल में तुमने अपना कारवां बदल लिया, मगर आगे ज़िंदगी के जंग-ए-मैदान थे, और मुसीबतों से लगे तुम घबराने, पर तुम्हें ये मालूम न था, के वो दर्द ही तुम्हारे जान थे। कब तलक भागते फिरोगे अपने आप से, यहाँ पल में हर मंज़र बदल जाते हैं, अब बटोर लो उन्हें जो बिख़र गए हैं, बेदर्द इस दुनिया मे सच्चे तुम्हारे मुस्कान थे।                                                     -दीपक कुमार