बुझे बुझे से हैं।
बुझे बुझे से हैं ख़्वाब मेरे,
तू आके इन्हें ज़रा हवा तो दे,
ढह गया है मेरे सपनों का वो मकां,
बात इतनी सी है कि इक मुक़म्मल जहां तो दे।
-दीपक कुमार
जीवन के हर पहलू को शब्दों में बयाँ किया जाए तो बात ही निराली है। कविता, गीत और शायरी के माध्यम से अगर जिंदगी के हर लम्हे को गूँथ दिया जाए तो एक ऐसी माला तैयार होती है जिसकी महक निरंतर फैलती ही जाती है और जो कभी पुरानी नही होती। कुछ ऐसे ही पलों को बयां करती है ये ब्लॉग, जिससे प्रेम रस परस्पर टपकता है।
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