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वो धीरे से धीरे मेरी ही गली आ रही है।

धीमी धीमी सी तेरी आहटें अब आ रही है, हौले हौले से मेरी धड़कने ये बढ़ा रही है, सुन ऐ नादां दिल तू ठहर जा, एक नशा सो वो हवा में मिला रही है, वो धीरे से धीरे मेरी ही गली आ रही है। जुल्फें उसकी जो खुले तो खुशबुएं बिखरा रही है, लब जो उसके खुल पड़े तो मोतियें बरसा रही है, साजिशें वो इन फिज़ां में करके मुझको बहका रही है, वो धीरे से धीरे मेरी ही गली आ रही है। नज़रें उसकी जो उठे तो इक क़यामत वो ला रही है, उंगलियों से गेसुओं को अपने वो सुलझा रही है, राह भी अब उसकी खातिर पत्तियाँ बिछा रही है, वो धीरे से धीरे मेरी ही गली आ रही है।                                                        -दीपक कुमार