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Showing posts from September, 2019

नशा भर के देख लूँ तुझे।

नशा भर के देख लूँ तुझे शराब समझकर, कोई ग़जल न लिख दूं मैं फ़िर तुझे अल्फ़ाज़ समझकर। इस क़दर जूनून छाया है मुझपर तेरे इश्क़ का, जूगनूयें दिन में उड़ाता हूँ मैं रात समझकर। हर दुआओं में बस एक तुझे ही मांगता हूँ मैं, बड़ी सिद्दत से पढ़ता हूँ तुझे नमाज़ समझकर। लोगों में चर्चें न फैल जाए हमारे, अब तक छुपा रखा है तुझे राज़ समझकर। तू इश्क़ की एक लंबी सी चादर है, आ तुझे ओढ़ लूँ मैं रस्मे-रिवाज़ समझकर। तू भी आजमले की कितनी शिक़ायत है मुझे तुझसे, मैं रूठा हूँ मुझे मना ले नाराज़ समझकर। मोहब्बत इस जहां में कौन मुझसा तुझपर लुटायेगा, बड़े सलीक़े से संभाला है तुझे मौसमे-गुलज़ार समझकर।                                                     - दीपक कुमार

मैं हूँ और बस मेरी तन्हाई है।

मुझे ख़ुद से अब इतनी रुसवाई है, की हर तरफ़ तेरी यादों की परछाईं है, दूर तलक मेरी नजरें तुझे ढूंढ़कर लौट आती है, अब मैं हूँ और बस मेरी तन्हाई है।                                                   -दीपक कुमार

एक तुझे जीतकर

अनेकों बार तो मैं हृदय को तार तार आया हूँ, तुझपर अपना सारा वर्चस्व लुटा आया हूँ, अब कोई ग़म नही की मौत भी मुझे हरा दे, एक तुझे जीतकर मैं सारा जग जीत आया हूँ।                                                  -दीपक कुमार

अंदर तक हिला दूंगा मैं।

किसी रोज़ मिलो तो मिलके सारे गिले शिकवे मिटा दूंगा मैं, लगा कर तुझे सीने से अंदर तक हिला दूंगा मैं।                                                      -दीपक कुमार

किसी और को ख़ुदा किया है तुमने

फिर से मुझे रुषवा किया है तुमने, के खुद से मुझे जुदा किया है तुमने, बहुत मलाल है मुझे दिल टूटने का, ठुकरा कर मुझे किसी और को खुदा किया है तुमने।

ये तय हुआ था।। @https://youtu.be/0lymVTMh7Ns

साथ साथ चलना है ये तय हुआ था, इस शहर में रहना भी तय हुआ था। अब जो चले गए हो मुझे बेघर करके, एक घर मे साथ साथ रहना भी तय हुआ था। उम्मीद है तुम अपनी ख़बर देते रहोगे, जुदा होकर भी खत लिखना ये तय हुआ था। मोहब्बत में यादें सिर्फ मेरे हिस्सें ही आयी, जबकि याद तू भी करेगी ये तय हुआ था। सोचा इसबार की तेरी आख़िरी ख़त भी जला दूंगा मैं, मगर खयाल आया कि तुझे आबाद रखना भी तय हुआ था। मेरे ज़ेहन से तू आज भी जाती नही है, भुलाया मैं भी नही जाऊंगा ये तय हुआ था। बिछड़ कर जो मुझसे दूर रहने लगे हो, बगैर मेरे एक पल भी न रह पाओगे ये तय हुआ था।                                                        -दीपक कुमार

वो धीरे से धीरे मेरी ही गली आ रही है।

धीमी धीमी सी तेरी आहटें अब आ रही है, हौले हौले से मेरी धड़कने ये बढ़ा रही है, सुन ऐ नादां दिल तू ठहर जा, एक नशा सो वो हवा में मिला रही है, वो धीरे से धीरे मेरी ही गली आ रही है। जुल्फें उसकी जो खुले तो खुशबुएं बिखरा रही है, लब जो उसके खुल पड़े तो मोतियें बरसा रही है, साजिशें वो इन फिज़ां में करके मुझको बहका रही है, वो धीरे से धीरे मेरी ही गली आ रही है। नज़रें उसकी जो उठे तो इक क़यामत वो ला रही है, उंगलियों से गेसुओं को अपने वो सुलझा रही है, राह भी अब उसकी खातिर पत्तियाँ बिछा रही है, वो धीरे से धीरे मेरी ही गली आ रही है।                                                        -दीपक कुमार

बुझे बुझे से हैं।

बुझे बुझे से हैं ख़्वाब मेरे, तू आके इन्हें ज़रा हवा तो दे, ढह गया है मेरे सपनों का वो मकां, बात इतनी सी है कि इक मुक़म्मल जहां तो दे।                                                        -दीपक कुमार