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आहिस्ता आहिस्ता

आहिस्ता आहिस्ता मैं तुझसे जुदा हो रहा हूँ, मुझे न पता है मैं क्या से क्या हो रहा हूँ। खतावार हूँ मैं तेरी वफ़ा का, तेरे ही संसार से मैं अब लापता हो रहा हूँ। ज़िक्र तेरा ही है लबों पे अब भी, यादों की लौ में धुआँ हो रहा हूँ। नमी तेरी आंखों की मैं ढूंढता हूँ, अश्कों की खातिर तेरी मैं हवा हो रहा हूँ। आवाज़ दे कि मुझको बुलाले तू वापस, घड़ी हर घड़ी मैं अब फ़ना हो रहा हूँ।                                                      -दीपक कुमार