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हर लम्हा हर बातें तेरी मुझको

हर लम्हा हर बातें तेरी मुझको सताती है, दिन बीते या ना बीते पर रातें मुझको जगाती है। तेरा मिलके वो बिछड़ना मेरी पलकों पे छा जाती है, तुझे भूलूँ तो भी कैसे मेरी सांसे थम सी जाती है। अब राहें मुश्किल हैं जो संग तेरे आसान काट जाती थी, तुझे मिलके हर घड़ियां जैसे सदियों में बदल जाती थी। ये सावन क्या बरसेगा मेरी अखियां ही बरस जाती है, तुझे ढूँढू बूंदों में न जाने कहाँ तू छुप जाती है, मेरा सबकुछ तो तू था मेरी जान निकलती जाती है। हर लम्हा हर बातें तेरी मुझको सताती है, दिन बीते या ना बीते पर रातें मुझको जगाती है।                                                    -दीपक कुमार

बेक़रारी का आलम

यूँ तो आलम ना थी बेक़रारी का, ना जाने क्यूँ तुझसे बिछड़ के एक आह सी उठती है।                                                     -दीपक कुमार