छायी है अम्बर पे
छायी है अम्बर पे वही सावन की बदली मन मे है कुछ धून्धली सी यादे उछ्ली, फिर वही पहला सा नज़ारा है हम तुफान मे घिरे है और दूर किनारा है, पग पग पे है ज्ज़्बा हिलोरा मारे पर रोके है मुझे धडकनो के इशारे, है इच्छा प्रबल के मै जीतुंगा कल दर्पण है जैसे मेरे जीवन का हर पल, आज फिर से शायद वही ज़ख्म है उभरा कैसे चुनू ये अपने ही दिल का है टुकडा, जो बीत गयी वो कहानी है यादे ही तो बस उसकी निशानी है। - दीपक कुमार