वो कहती रही।
वो कहती रही मै सुनता रहा,
ख़्वाब उसके ही अक्सर मै बुनता रहा,
एहसास तब हुआ जुदाई का,
उसके जाने के बाद ,
जब मैं उसे ढूँढता रहा।
बड़ी अजीब सी हो गई है ज़िन्दगी,
अब बस यादों का किनारा है,
हवाओं का ज़ोर भी नही था,
और मैं सुलगता रहा।
मन की टहनियों से,
अब वो प्यार टपकता है,
फिर से उसकी लाली पे,
गिरने को ये बूंदे तरसता है।
ना समझ था मैं,
जो न उसे समझ पाया,
कुछ मीठी बातें हैं उसकी,
और कुछ हल्का सा साया।
जो हर पल चुभती है मुझको,
आ फिर से अब रोक लूँ तुझको,
वो खुद में सारा संसार बसाए बैठी है,
जीवन को जैसे अमृतधार बनाये बैठी है,
एक ही गति से वो चलती रही,
और मैं हर कदम पे फिसलता रहा।
कुछ कसमें हैं जो तोड़ दी मैंने,
कुछ यादें है जो निचोड़ दी मैंने,
मेरा सबकुछ उस पल में था,
ह्रदय जैसे शीशमहल में था।
क्या वाणी क्या संगीत है,
अब भी वही पुरानी रीत है,
प्रियतमा को भुलाकर भी,
जल रही विरह में प्रीत है।
नवोदित सा तब मन था मेरा,
था प्यार का फैला सा आँगन तेरा,
तब न रीति था न कोई रिवाज़ था,
जग से निराली वो तेरा आवाज़ था।
वो यूँ ही गुनगुनाती रही,
और मैं बस सुनता रहा।
कहाँ विश्व को आवाज़ लगाऊँ,
आ अब तुझमें ही मिल जाऊं,
जीवन - मरण सब व्यर्थ है,
जो खो दूँ तुझे,तो अनर्थ है।
कई बार तो सुलझाया हूँ,
फिर भी उलझता आया हूँ,
तु कुछ कर निदान मेरा ,
झूठा नही था ईमान मेरा।
बांकी सब तो बातें हैं,
अब यादों वाली रातें है,
हो सके तो मुझे माफ़ करना,
इतना ही इंसाफ़ करना।
वो मुझसे दूर जाती रही,
और मैं पल पल भटकता रहा।
- दीपक कुमार
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