मेरा जो भी तजुर्बा है

मेरा जो भी तजुर्बा है ऐ ज़िंदगी,
मै तुझे बतला जाऊँगा।
चाहे जितना करना पड़े संघर्ष,
मै कर जाऊँगा।

उम्म्मीद क्या होती है ज़माने में
ये हमसे बेहतर कोई नहीं जानता,
कभी आ मेरी चौखट पे,
ये विषय भी तुझे सिखला जाऊँगा।
मेरा जो भी तजुर्बा है ऐ ज़िन्दगी,
मैं तुझे बतला जाऊँगा।

रंग बदल के तु मेरा इम्तिहां ना ले
जीतूंगा मै ही अब हार का नाम ना ले,
सितम का ज़ादू तेरा औरों पे चल जायेगा
उठूँगा हर हाल में अब गिरने का नाम ना ले।
प्यास मेरी थोड़े की नही है जो मिट जाये,
ज़रूरत आने पर ये आसमां भी पी जाऊँगा।

मेरा जो भी तजुर्बा है ऐ ज़िन्दगी,
मैं तुझे बतला जाऊँगा।

                                                  - दीपक कुमार

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