मंज़िले तुमने तय की

मंज़िले तुमने तय की,
मग़र रास्ते सारे अंजान थे,
कुछ सिमटी हुई यादें ही,
तुम्हारे पहचान थे।

पल में तुमने अपना कारवां बदल लिया,
मगर आगे ज़िंदगी के जंग-ए-मैदान थे,
और मुसीबतों से लगे तुम घबराने,
पर तुम्हें ये मालूम न था,
के वो दर्द ही तुम्हारे जान थे।

कब तलक भागते फिरोगे अपने आप से,
यहाँ पल में हर मंज़र बदल जाते हैं,
अब बटोर लो उन्हें जो बिख़र गए हैं,
बेदर्द इस दुनिया मे सच्चे तुम्हारे मुस्कान थे।

                                                    -दीपक कुमार

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