तु मय बरसाती है।
मदिरा सी मधुता तब ये छलकाती है
नैन तेरे जब गोरी काज़ल से लिपट जाती है,
मन पापी मचल उठता है पीने को,
जब आंखों से तू मय बरसाती है।
मै पुलकित हो उठता हूं तुझे पाकर,
तू आई हो जैसे ग़ुलाब जल में नहाकर,
हर सुबह मुझसे तेरा गुणगान करती हैं
कलियाँ भी झुक के तेरा सम्मान करती हैं,
अब तक तो थी सड़कें वीरान सी
पर वो भी अब तेरा बयां करती है,
तब इस मृदुल अदा पे तेरी
सुबह भी इतरा जाती है,
जब आँखों से तू मय बरसाती हैं।
सहेलियों के संग जब तू कुछ बातें करती है
जब छुप-छुप के तेरी नज़रें मुझसे मुलाक़ातें करती हैं,
जब रीति-रस्म सब पुराने से लगतें हैं
जब सारी रैना आहें भरती हैं,
जब गीत मेरे होंठों पर आ जाते हैं
जब सर्द शबनम धूप में पिघल जाते हैं,
तब मन मंदिर में तू दस्तक़ दे जाती है,
जब आंखों से तू मय बरसाती हैं।
दिन ढ़लता है और जब शाम आती है
न जाने क्यूँ एक बेचैनी सी छा जाती है,
तेरी तलाश में जब मैं भागा-भागा आता हूँ
जब तू मुझे कहीँ भी नज़र न आती है,
जब मन मायूस सा हो जाता है
और जब चेहरे की रंग उतर जाती है,
तब दूर कहीँ तू मंद-मंद मुस्काती,
जब आंखों से तू मय बरसाती हैं।
- दीपक कुमार
Comments